आप भी काका जी की एक कविता का आनन्द लीजिए । देवेन्द्र कुमार रघु
खटमल-मच्छर-युद्ध 'काका' वेटिंग रूम में फँसे देहरादून । नींद न आई रात भर, मच्छर चूसें खून ॥ मच्छर चूसें खून, देह घायल कर डाली । हमें उड़ा ले ज़ाने की योजना बना ली ॥ किंतु बच गए कैसे, यह बतलाएँ तुमको । नीचे खटमल जी ने पकड़ रखा था हमको ॥
हुई विकट रस्साकशी, थके नहीं रणधीर । ऊपर मच्छर खींचते नीचे खटमल वीर ॥ नीचे खटमल वीर, जान संकट में आई । घिघियाए हम- "जै जै जै हनुमान गुसाईं ॥ पंजाबी सरदार एक बोला चिल्लाके - त्व्हाणूँ पजन करना हो तो करो बाहर जाके ॥
आप भी काका जी की एक कविता का आनन्द लीजिए । देवेन्द्र कुमार रघु
चोरी की रपट
घूरे खाँ के घर हुई चोरी आधी रात कपड़े-बर्तन ले गए छोड़े तवा-परात छोड़े तवा-परात, सुबह थाने को धाए क्या-क्या चीज़ गई हैं सबके नाम लिखाए आँसू भर कर कहा – महरबानी यह कीजै तवा-परात बचे हैं इनको भी लिख लीजै कोतवाल कहने लगा करके आँखें लाल उसको क्यों लिखवा रहा नहीं गया जो माल नहीं गया जो माल, मियाँ मिमियाकर बोला। मैंने अपना दिल हुज़ूर के आगे खोला मुंशी जी का इंतजाम किस तरह करूँगा तवा-परात बेचकर 'रपट लिखाई' दूँगा
मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये तुम एम ए फर्स्ट डिविज़न हो मैं हुआ मैट्रिक फेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये तुम फौज़ी अफसर की बेटी मैं तो किसान का बेटा हूँ तुम रबड़ी खीर मलाई हो मैं तो सत्तू सपरेटा हूँ तुम ए सी घर में रहती हो मैं पेड़ के नीचे लेटा हूँ तुम नई मारुती लगती हो मैं स्कूटर लम्ब्रेटा हूँ
इस कदर अगर हम छुप छुप कर आपस में प्यार बढ़ाएँगे तो एक रोज़ तेरे डैडी अमरीश पुरी बन जाएँगे
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
तुम अरब देश की घोड़ी हो मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये तुम दीवाली का बोनस हो मैं भूखों की हड़ताल प्रिये तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो मैं अल्मुनियम का थाल प्रिये तुम चिकन सूप बिर्यानी हो मैं कंकड़ वाली दाल प्रिये तुम हिरन चौकड़ी भरती हो मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये
मैं पके आम सा लटका हूँ मत मारो मुझे गुलेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
मैं शनि-देव जैसा कुरूप तुम कोमल कंचन काया हो मैं तन-से मन-से कांशीराम तुम महा चंचला माया हो तुम निर्मल-पावन गंगा हो मैं जलता हुआ पतंगा हूँ तुम राज-घाट का शांति मार्च मैं हिन्दू-मुस्लिम दंगा हूँ तुम हो पूनम का ताज़महल मैं काली गुफा अजंता की तुम हो वरदान विधाता का मैं गलती हूँ भगवंता की
तुम जेट विमान की शोभा हो मैं बस की ठेलम-ठेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
तुम नई विदेशी मिक्सी हो मैं पत्थर का सिल-बट्टा हूँ तुम ए के सैंतालिस जैसी मैं तो इक देशी कट्टा हूँ तुम चतुर राबड़ी देवी सी मैं भोला भाला लालू हूँ तुम मुक्त शेरनी जंगल की मैं चिड़ियाघर का भालू हूँ तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सीं मैं वी.पी. सिंह सा खाली हूँ तुम हँसी माधुरी दीक्षित की मैं पुलिसमैन की गाली हूँ
कल अगर जेल हो जाए तो दिलवा देना तुम बेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
मैं ढाबे के ढाँचे जैसा तुम पाँच सितारा होटल हो मैं महुए का देशी ठर्रा तुम रेड-लेबल की बोतल हो तुम चित्रहार का मधुर गीत मैं कृषि-दर्शन की झाड़ी हूँ तुम विश्व-सुन्दरी सी कमाल मैं तेलिया-छाप कबाड़ी हूँ तुम सोनी का मोबाइल हो मैं टेलीफोन वाला चोंगा तुम मछली मांसरोवर की मै सागर तट का हूँ घोंघा
दस मँजिल से गिर जाऊँगा मत आगे मुझे धकेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
तुम सत्ता की महरानी हो मैं विपक्ष की लाचारी हूँ तुम हो ममता-जयललिता सी मैं क्वाँरा अटल बिहारी हूँ तुम तेंडुलकर का शतक प्रिये मैं फॉलोऑन की पारी हूँ तुम गेट्ज़, मातिज़, कॉरोला हो मैं लेलैण्ड की लॉरी हूँ
मुझको रैफ्री ही रहने दो मत खेलो मुझसे खेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
मैं सोच रहा कि रहे कबसे हैं श्रोता मुझको झेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
काका जी की कुछ और कविताओं का आनन्द लीजिए – देवेन्द्र कुमार रघु
सुरा समर्थन
भारतीय इतिहास का, कीजे अनुसंधान देव-दनुज-किन्नर सभी, किया सोमरस पान किया सोमरस पान, पियें कवि, लेखक, शायर जो इससे बच जाये, उसे कहते हैं 'कायर' कहँ 'काका', कवि 'बच्चन' ने पीकर दो प्याला दो घंटे में लिख डाली, पूरी 'मधुशाला'
भेदभाव से मुक्त यह, क्या ऊँचा क्या नीच अहिरावण पीता इसे, पीता था मारीच पीता था मारीच, स्वर्ण- मृग रूप बनाया पीकर के रावण सीता जी को हर लाया कहँ 'काका' कविराय, सुरा की करो न निंदा मधु पीकर के मेघनाद पहुँचा किष्किंधा
ठेला हो या जीप हो, अथवा मोटरकार ठर्रा पीकर छोड़ दो, अस्सी की रफ़्तार अस्सी की रफ़्तार, नशे में पुण्य कमाओ जो आगे आ जाये, स्वर्ग उसको पहुँचाओ पकड़ें यदि सार्जेंट, सिपाही ड्यूटी वाले लुढ़का दो उनके भी मुँह में, दो चार पियाले
पूरी बोतल गटकिये, होय ब्रह्म का ज्ञान नाली की बू, इत्र की खुशबू एक समान खुशबू एक समान, लड़्खड़ाती जब जिह्वा 'डिब्बा' कहना चाहें, निकले मुँह से 'दिब्बा' कहँ 'काका' कविराय, अर्ध-उन्मीलित अँखियाँ मुँह से बहती लार, भिनभिनाती हैं मखियाँ
प्रेम-वासना रोग में, सुरा रहे अनुकूल सैंडिल-चप्पल-जूतियां, लगतीं जैसे फूल लगतीं जैसे फूल, धूल झड़ जाये सिर की बुद्धि शुद्ध हो जाये, खुले अक्कल की खिड़की प्रजातंत्र में बिता रहे क्यों जीवन फ़ीका बनो 'पियक्कड़चंद', स्वाद लो आज़ादी का
एक बार मद्रास में देखा जोश-ख़रोश बीस पियक्कड़ मर गये, तीस हुये बेहोश तीस हुये बेहोश, दवा दी जाने कैसी वे भी सब मर गये, दवाई हो तो ऐसी चीफ़ सिविल सर्जन ने केस कर दिया डिसमिस पोस्ट मार्टम हुआ, पेट में निकली 'वार्निश'
काका जी की कुछ और कविताओं का आनन्द लीजिए – देवेन्द्र कुमार रघु
कालिज स्टूडैंट
फ़ादर ने बनवा दिये, तीन कोट छै पैंट कुलदीपक जी बन गये, कालिज स्टूडैंट कालिज स्टूडैंट, हुये होस्टल में भरती दिन भर बिस्कुट चरैं, शाम को खायें इमरती कहँ 'काका' कविराय, बुद्धि पर डाली चादर मौज़ कर रहे पुत्र, हड्डियां घिसते फ़ादर पढ़ना-लिखना व्यर्थ है, दिन भर खेलो खेल होते रहु दो साल तक, फस्ट इयर में फेल फस्ट इयर में फेल, जेब में कंघा डाला साइकिल ले चल दिए, लगा कमरे का ताला कहें काका कविराय, गेटकीपर से लड़कर मुफ्त सिनेमा देख, कोच पर बैठ अकड़कर
अधिकारी माने नहीं, अगर आपकी माँग हॉकी लेकर तोड़ दो अनुशासन की टाँग अनुशासन की टाँग, वही बन सकता नेता जो सभ्यता शिष्टता का चूरन कर देता फिल्म दिखाए मुफ्त उसी को मित्र बनाओ कॉपी में प्रिय श्रीदेवी का चित्र बनाओ
पूज्य पिता की नाक में डाले रहो नकेल रेग्युलर होते रहो तीन साल तक फेल तीन साल तक फेल. भाग्य चमकाता ज़ीरो बहुत शीघ्र बन जाओगे कालेज के हीरो कह काका कविराय ,वही सच्चा विद्यार्थी जो निकाल कर दिखला दे विद्या की अर्थी
प्रोफेसर या प्रिंसिपल बोलें जब प्रतिकूल हाकी लेकर तोड़ दो, मेज़ और स्टूल मेज़ और स्टूल, चलाओ ऐसी हाकी शीशा और किवाड़ बचे नहिं एकउ बाकी कहें 'काका कवि' राय, भयंकर तुमको देता बन सकते हो इसी तरह बिगड़े दिल नेता
छात्र प्रशंसा-पात्र वह, जो 'दादा' कहलाए दादा से नेता बने तोड़-फोड़ अपनाए तोड़-फोड़ अपनाए, पढ़ाई में क्या रक्खा मारा-मारा फिरे, व्यर्थ खाएगा धक्का बहुत हुआ तो बन जाए प्रोफेसर, अफसर यदि नेता बन गया, शीघ्र हो जाए मिनिस्टर
काका हाथरसी की एक और कविता का आनन्द लीजिए । - देवेन्द्र कुमार ‘रघु’
दार्शनिक दलबदलू
आए जब दल बदल कर नेता नन्दूलाल पत्रकार करने लगे, ऊल-जलूल सवाल ऊल-जलूल सवाल, आपने की दल-बदली राजनीति क्या नहीं हो रही इससे गँदली नेता बोले व्यर्थ समय मत नष्ट कीजिए जो बयान हम दें, ज्यों-का-त्यों छाप दीजिए
समझे नेता-नीति को, मिला न ऐसा पात्र मुझे जानने के लिए, पढ़िए दर्शन-शास्त्र पढ़िए दर्शन-शास्त्र, चराचर जितने प्राणी उनमें मैं हूँ, वे मुझमें, ज्ञानी-अज्ञानी मैं मशीन में, मैं श्रमिकों में, मैं मिल-मालिक मैं ही संसद, मैं ही मंत्री, मैं ही माइक
हरे रंग के लैंस का चश्मा लिया चढ़ाय सूखा और अकाल में 'हरी-क्रांति' हो जाय 'हरी-क्रांति' हो जाय, भावना होगी जैसी उस प्राणी को प्रभु मूरत दीखेगी वैसी भेद-भाव के हमें नहीं भावें हथकंडे अपने लिए समान सभी धर्मों के झंडे
सत्य और सिद्धांत में, क्या रक्खा है तात? उधर लुढ़क जाओ जिधर, देखो भरी परात देखो भरी परात, अर्थ में रक्खो निष्ठा कर्तव्यों से ऊँचे हैं, पद और प्रतिष्ठा जो दल हुआ पुराना, उसको बदलो साथी दल की दलदल में, फँसकर मर जाता हाथी
आप भी काका जी की एक कविता का आनन्द लीजिए । देवेन्द्र कुमार रघु
जवाब देंहटाएंखटमल-मच्छर-युद्ध
'काका' वेटिंग रूम में फँसे देहरादून ।
नींद न आई रात भर, मच्छर चूसें खून ॥
मच्छर चूसें खून, देह घायल कर डाली ।
हमें उड़ा ले ज़ाने की योजना बना ली ॥
किंतु बच गए कैसे, यह बतलाएँ तुमको ।
नीचे खटमल जी ने पकड़ रखा था हमको ॥
हुई विकट रस्साकशी, थके नहीं रणधीर ।
ऊपर मच्छर खींचते नीचे खटमल वीर ॥
नीचे खटमल वीर, जान संकट में आई ।
घिघियाए हम- "जै जै जै हनुमान गुसाईं ॥
पंजाबी सरदार एक बोला चिल्लाके -
त्व्हाणूँ पजन करना हो तो करो बाहर जाके ॥
आप भी काका जी की एक कविता का आनन्द लीजिए ।
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र कुमार रघु
चोरी की रपट
घूरे खाँ के घर हुई चोरी आधी रात
कपड़े-बर्तन ले गए छोड़े तवा-परात
छोड़े तवा-परात, सुबह थाने को धाए
क्या-क्या चीज़ गई हैं सबके नाम लिखाए
आँसू भर कर कहा – महरबानी यह कीजै
तवा-परात बचे हैं इनको भी लिख लीजै
कोतवाल कहने लगा करके आँखें लाल
उसको क्यों लिखवा रहा नहीं गया जो माल
नहीं गया जो माल, मियाँ मिमियाकर बोला।
मैंने अपना दिल हुज़ूर के आगे खोला
मुंशी जी का इंतजाम किस तरह करूँगा
तवा-परात बेचकर 'रपट लिखाई' दूँगा
धर्मवीर सबरस के दोहे पढ़िये - देवेन्द्र कुमार रघु
जवाब देंहटाएंभारत में जो भी मरे, वही स्वर्ग में जाए ।
पता नहीं फिर नरक क्यों विधि ने दिया बनाय ।
वहाँ क्या भैंस बँधेंगी ?
हरिश्चन्द्र, गाँधी प्रवर, ईशा श्रद्धानन्द ।
चढ़े सत्य की भेंट सब, मिला बड़ा आनन्द ।
आप भी सत्य बोलिए ।
सास बहू में ठन गई लड़ते बीती रात ।
बढ़ते-बढ़ते बढ़ गई सिर्फ़ ज़रा सी बात ।
खटोला यहीं बिछेगा ।
कर्ज़ा लेकर खाइये, जब तक घट में प्राण ।
देने वाले रोएँगे, मरने पर श्रीमान ।
कि जैसे बाप मरा हो ।
पूँजीपतियो पत्नियो ले लो मुझको गोद ।
मुझको भी हो जाए कुछ लक्ष्मी जी का बोध ।
तिजोरी में रह लूँगा ।
मानव तू आँखों से पढ़ धर मन हरि क ध्यान ।
कहीं भजन की भूख से मर न जाए भगवान ।
बेचारा इकलौता है ।
काम क्रोध मद मोह से ले तू मन को मोड़ ।
सम्भव यदि ये हो सके प्राणों को भी छोड़ ।
ईश्वर खड़ा मिलेगा ।
दक्षिणा में गुरु द्रोण ने लिया अँगूठा माँग ।
गलती की श्री द्रोण ने लेते दोनों टाँग ।
साथ में चप्पल मिलतीं ।
शिव शंकर भगवान की हालत थी कुछ तंग ।
जो होती अच्छी दशा काहे घोटते भंग ।
ठाठ से ठर्रा पीते ।
बसों सिनेमा में लगी धूम्रपान पर रोक ।
ठर्रा पीकर बैठिए नहीं रोक और टोक ।
वहीं पर उल्टी कीजे ।
ऊधो कहिए कृष्ण से अब इतना परहेज ।
भला आदमी सदा ही चिट्ठी देता भेज ।
चाहे बैरंग कर देता ।
एक और हास्य कविता पढ़िए – देवेन्द्र कुमार रघु
जवाब देंहटाएंमुश्किल है अपना मेल प्रिये
– सुनील जोगी
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
तुम एम ए फर्स्ट डिविज़न हो
मैं हुआ मैट्रिक फेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
तुम फौज़ी अफसर की बेटी
मैं तो किसान का बेटा हूँ
तुम रबड़ी खीर मलाई हो
मैं तो सत्तू सपरेटा हूँ
तुम ए सी घर में रहती हो
मैं पेड़ के नीचे लेटा हूँ
तुम नई मारुती लगती हो
मैं स्कूटर लम्ब्रेटा हूँ
इस कदर अगर हम छुप छुप कर
आपस में प्यार बढ़ाएँगे
तो एक रोज़ तेरे डैडी
अमरीश पुरी बन जाएँगे
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे
भिजवा देंगे वो जेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
तुम अरब देश की घोड़ी हो
मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये
तुम दीवाली का बोनस हो
मैं भूखों की हड़ताल प्रिये
तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो
मैं अल्मुनियम का थाल प्रिये
तुम चिकन सूप बिर्यानी हो
मैं कंकड़ वाली दाल प्रिये
तुम हिरन चौकड़ी भरती हो
मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये
मैं पके आम सा लटका हूँ
मत मारो मुझे गुलेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
मैं शनि-देव जैसा कुरूप
तुम कोमल कंचन काया हो
मैं तन-से मन-से कांशीराम
तुम महा चंचला माया हो
तुम निर्मल-पावन गंगा हो
मैं जलता हुआ पतंगा हूँ
तुम राज-घाट का शांति मार्च
मैं हिन्दू-मुस्लिम दंगा हूँ
तुम हो पूनम का ताज़महल
मैं काली गुफा अजंता की
तुम हो वरदान विधाता का
मैं गलती हूँ भगवंता की
तुम जेट विमान की शोभा हो
मैं बस की ठेलम-ठेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
तुम नई विदेशी मिक्सी हो
मैं पत्थर का सिल-बट्टा हूँ
तुम ए के सैंतालिस जैसी
मैं तो इक देशी कट्टा हूँ
तुम चतुर राबड़ी देवी सी
मैं भोला भाला लालू हूँ
तुम मुक्त शेरनी जंगल की
मैं चिड़ियाघर का भालू हूँ
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सीं
मैं वी.पी. सिंह सा खाली हूँ
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की
मैं पुलिसमैन की गाली हूँ
कल अगर जेल हो जाए तो
दिलवा देना तुम बेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
मैं ढाबे के ढाँचे जैसा
तुम पाँच सितारा होटल हो
मैं महुए का देशी ठर्रा
तुम रेड-लेबल की बोतल हो
तुम चित्रहार का मधुर गीत
मैं कृषि-दर्शन की झाड़ी हूँ
तुम विश्व-सुन्दरी सी कमाल
मैं तेलिया-छाप कबाड़ी हूँ
तुम सोनी का मोबाइल हो
मैं टेलीफोन वाला चोंगा
तुम मछली मांसरोवर की
मै सागर तट का हूँ घोंघा
दस मँजिल से गिर जाऊँगा
मत आगे मुझे धकेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
तुम सत्ता की महरानी हो
मैं विपक्ष की लाचारी हूँ
तुम हो ममता-जयललिता सी
मैं क्वाँरा अटल बिहारी हूँ
तुम तेंडुलकर का शतक प्रिये
मैं फॉलोऑन की पारी हूँ
तुम गेट्ज़, मातिज़, कॉरोला हो
मैं लेलैण्ड की लॉरी हूँ
मुझको रैफ्री ही रहने दो
मत खेलो मुझसे खेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
मैं सोच रहा कि रहे कबसे
हैं श्रोता मुझको झेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
अदम गौंडवी की एक क्रांतिकारी गज़ल पढ़िए और यदि आपके पास ऐसी ही कोई काव्य रचना हो तो हमें भी पढ़वाइये – देवेन्द्र कुमार रघु
जवाब देंहटाएंअदम गौंडवी की गज़ल
जो उलझ कर रह गई है फाइलों के जाल में
गाँव तक वो रोशनी आएगी कितने साल में
बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई
रमसुधी की झोंपड़ी सरपंच की चौपाल में
खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में
जिसकी कीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में ऐसा सिक्का ढालना क्या जिस्म की टकसाल में
यदि आपके पास नीचे लिखी कविता जैसी कोई काव्य रचना हो तो हमें भी पढ़वाइये – देवेन्द्र कुमार रघु
जवाब देंहटाएंबीती विभावरी
- "बेढ़ब बनारसी"
बीती विभावरी। जाग री !
छ्प्पर पर बैठे काँव काँव करते हैं,
कितने काग री !
बीती विभावरी । जाग री !
तू लम्बी ताने सोती है
बिटिया माँ कह कह रोती है
अब तक तो गिरा दिये उसने,
आँसू भर कर दो गागरी
बीती विभावरी । जाग री !
उठ जल्दी, दे जलपान मुझे
दो बीडे दे दे पान मुझे
तू अब तक सोती है आली !
जाना है मुझे प्रयाग री !
बीती विभावरी । जाग री !
बिजली का भोपू बोल रहा
धोबी गदहे को खोल रहा
कितना दिन चढ आया,
तूने न जलाई आग री !
बीती विभावरी । जाग री !
काका जी की कुछ और कविताओं का आनन्द लीजिए – देवेन्द्र कुमार रघु
जवाब देंहटाएंसुरा समर्थन
भारतीय इतिहास का, कीजे अनुसंधान
देव-दनुज-किन्नर सभी, किया सोमरस पान
किया सोमरस पान, पियें कवि, लेखक, शायर
जो इससे बच जाये, उसे कहते हैं 'कायर'
कहँ 'काका', कवि 'बच्चन' ने पीकर दो प्याला
दो घंटे में लिख डाली, पूरी 'मधुशाला'
भेदभाव से मुक्त यह, क्या ऊँचा क्या नीच
अहिरावण पीता इसे, पीता था मारीच
पीता था मारीच, स्वर्ण- मृग रूप बनाया
पीकर के रावण सीता जी को हर लाया
कहँ 'काका' कविराय, सुरा की करो न निंदा
मधु पीकर के मेघनाद पहुँचा किष्किंधा
ठेला हो या जीप हो, अथवा मोटरकार
ठर्रा पीकर छोड़ दो, अस्सी की रफ़्तार
अस्सी की रफ़्तार, नशे में पुण्य कमाओ
जो आगे आ जाये, स्वर्ग उसको पहुँचाओ
पकड़ें यदि सार्जेंट, सिपाही ड्यूटी वाले
लुढ़का दो उनके भी मुँह में, दो चार पियाले
पूरी बोतल गटकिये, होय ब्रह्म का ज्ञान
नाली की बू, इत्र की खुशबू एक समान
खुशबू एक समान, लड़्खड़ाती जब जिह्वा
'डिब्बा' कहना चाहें, निकले मुँह से 'दिब्बा'
कहँ 'काका' कविराय, अर्ध-उन्मीलित अँखियाँ
मुँह से बहती लार, भिनभिनाती हैं मखियाँ
प्रेम-वासना रोग में, सुरा रहे अनुकूल
सैंडिल-चप्पल-जूतियां, लगतीं जैसे फूल
लगतीं जैसे फूल, धूल झड़ जाये सिर की
बुद्धि शुद्ध हो जाये, खुले अक्कल की खिड़की
प्रजातंत्र में बिता रहे क्यों जीवन फ़ीका
बनो 'पियक्कड़चंद', स्वाद लो आज़ादी का
एक बार मद्रास में देखा जोश-ख़रोश
बीस पियक्कड़ मर गये, तीस हुये बेहोश
तीस हुये बेहोश, दवा दी जाने कैसी
वे भी सब मर गये, दवाई हो तो ऐसी
चीफ़ सिविल सर्जन ने केस कर दिया डिसमिस
पोस्ट मार्टम हुआ, पेट में निकली 'वार्निश'
काका जी की कुछ और कविताओं का आनन्द लीजिए – देवेन्द्र कुमार रघु
जवाब देंहटाएंकालिज स्टूडैंट
फ़ादर ने बनवा दिये, तीन कोट छै पैंट
कुलदीपक जी बन गये, कालिज स्टूडैंट
कालिज स्टूडैंट, हुये होस्टल में भरती
दिन भर बिस्कुट चरैं, शाम को खायें इमरती
कहँ 'काका' कविराय, बुद्धि पर डाली चादर
मौज़ कर रहे पुत्र, हड्डियां घिसते फ़ादर
पढ़ना-लिखना व्यर्थ है, दिन भर खेलो खेल
होते रहु दो साल तक, फस्ट इयर में फेल
फस्ट इयर में फेल, जेब में कंघा डाला
साइकिल ले चल दिए, लगा कमरे का ताला
कहें काका कविराय, गेटकीपर से लड़कर
मुफ्त सिनेमा देख, कोच पर बैठ अकड़कर
अधिकारी माने नहीं, अगर आपकी माँग
हॉकी लेकर तोड़ दो अनुशासन की टाँग
अनुशासन की टाँग, वही बन सकता नेता
जो सभ्यता शिष्टता का चूरन कर देता
फिल्म दिखाए मुफ्त उसी को मित्र बनाओ
कॉपी में प्रिय श्रीदेवी का चित्र बनाओ
पूज्य पिता की नाक में डाले रहो नकेल
रेग्युलर होते रहो तीन साल तक फेल
तीन साल तक फेल. भाग्य चमकाता ज़ीरो
बहुत शीघ्र बन जाओगे कालेज के हीरो
कह काका कविराय ,वही सच्चा विद्यार्थी
जो निकाल कर दिखला दे विद्या की अर्थी
प्रोफेसर या प्रिंसिपल बोलें जब प्रतिकूल
हाकी लेकर तोड़ दो, मेज़ और स्टूल
मेज़ और स्टूल, चलाओ ऐसी हाकी
शीशा और किवाड़ बचे नहिं एकउ बाकी
कहें 'काका कवि' राय, भयंकर तुमको देता
बन सकते हो इसी तरह बिगड़े दिल नेता
छात्र प्रशंसा-पात्र वह, जो 'दादा' कहलाए
दादा से नेता बने तोड़-फोड़ अपनाए
तोड़-फोड़ अपनाए, पढ़ाई में क्या रक्खा
मारा-मारा फिरे, व्यर्थ खाएगा धक्का
बहुत हुआ तो बन जाए प्रोफेसर, अफसर
यदि नेता बन गया, शीघ्र हो जाए मिनिस्टर
काका हाथरसी की एक और कविता का आनन्द लीजिए । - देवेन्द्र कुमार ‘रघु’
जवाब देंहटाएंदार्शनिक दलबदलू
आए जब दल बदल कर नेता नन्दूलाल
पत्रकार करने लगे, ऊल-जलूल सवाल
ऊल-जलूल सवाल, आपने की दल-बदली
राजनीति क्या नहीं हो रही इससे गँदली
नेता बोले व्यर्थ समय मत नष्ट कीजिए
जो बयान हम दें, ज्यों-का-त्यों छाप दीजिए
समझे नेता-नीति को, मिला न ऐसा पात्र
मुझे जानने के लिए, पढ़िए दर्शन-शास्त्र
पढ़िए दर्शन-शास्त्र, चराचर जितने प्राणी
उनमें मैं हूँ, वे मुझमें, ज्ञानी-अज्ञानी
मैं मशीन में, मैं श्रमिकों में, मैं मिल-मालिक
मैं ही संसद, मैं ही मंत्री, मैं ही माइक
हरे रंग के लैंस का चश्मा लिया चढ़ाय
सूखा और अकाल में 'हरी-क्रांति' हो जाय
'हरी-क्रांति' हो जाय, भावना होगी जैसी
उस प्राणी को प्रभु मूरत दीखेगी वैसी
भेद-भाव के हमें नहीं भावें हथकंडे
अपने लिए समान सभी धर्मों के झंडे
सत्य और सिद्धांत में, क्या रक्खा है तात?
उधर लुढ़क जाओ जिधर, देखो भरी परात
देखो भरी परात, अर्थ में रक्खो निष्ठा
कर्तव्यों से ऊँचे हैं, पद और प्रतिष्ठा
जो दल हुआ पुराना, उसको बदलो साथी
दल की दलदल में, फँसकर मर जाता हाथी
काका हाथरसी की एक और कविता का आनन्द लीजिए । - देवेन्द्र कुमार ‘रघु’
जवाब देंहटाएंजय बोलो बेईमान की!
मन मैला तन ऊजरा भाषण लच्छेदार
ऊपर सत्याचार है भीतर भ्रष्टाचार
झूठों के घर पंडित बाँचें कथा सत्य भगवान की जय बोलो बेईमान की!
लोकतंत्र के पेड़ पर कौआ करें किलोल
टेप-रिकार्डर में भरे चमगादड़ के बोल
नित्य नयी योजना बनतीं जन-जन के कल्यान की जय बोलो बेईमान की!
महँगाई ने कर दिए राशन – कारड फेल
पंख लगाकर उड़ गए चीनी-मिट्टी-तेल
क्यू में धक्का मार किवाड़ें बंद हुईं दूकान की
जय बोलो बेईमान की!
डाक-तार-संचार का प्रगति कर रहा काम
कछुआ की गति चल रहे लैटर-टेलीग्राम
धीरे काम करो तब होगी उन्नति हिन्दुस्तान की
जय बोलो बेईमान की!
चैक कैश कर बैंक से लाया ठेकेदार
कल बनाया पुल नया, आज पड़ी दरार
झाँकी-वाँकी कर को काकी फाइव ईयर प्लान की जय बोलो बेईमान की!
वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश
छ:-सौ पर दस्तखत किए मिले चार-सौ-बीस
मन ही मन कर रहे कल्पना शेष रकम के दान की
जय बोलो बेईमान की!
खड़े ट्रेन में चल रहे कक्का धक्का खायँ
दस रुपये की भेंट में थ्री टीयर मिल जाएँ
हर स्टेशन पर पूजा हो श्री टीटीई भगवान की
जय बोलो बेईमान की!
बेकारी औ भुखमरी महँगाई घनघोर
घिसे-पिटे ये शब्द हैं बन्द कीजिए शोर
अभी ज़रूरत है जनता के त्याग और बलिदान की
जय बोलो बेईमान की!
मिल मालिक से मिल गए नेता नमक हलाल
मंत्र पढ़ दिया कान में खत्म हुई हड़ताल
पत्र-पुष्प से पाकिट भर दी श्रमिकों के शैतान की
जय बोलो बेईमान की!
न्याय और अन्याय का नोट करो डिफरेंस
जिसकी लाठी बलवती हाँक ले गया भैंस
निर्बल धक्के खाएँ तूती बोल रही बलवान की
जय बोलो बेईमान की!
पर-उपकारी भावना पेशकार से सीख
बीस रुपे के नोट में बदल गई तारीख
खाल खिच रही न्यायालय में, सत्य-धर्म-ईमान की
जय बोलो बेईमान की!
नेताजी की कार से कुचल गया मज़दूर
बीच सड़क पर मर गया हुई गरीबी दूर
गाड़ी ले गए भगाकर जय हो कृपानिधान की
जय बोलो बेईमान की!
काका जी के दोहों की क्या बात है
जवाब देंहटाएं– देवेन्द्र कुमार रघु
ऐसी बानी बोलिए, जम कै झगड़ा होय
लेकिन ऐसा काजिए, जब तन भी तगड़ा होय
झूठ बराबर तप नहीं, साँच बराबर पाप
जाके हिरदे साँच है, बैठा-बैठा टाप
रूखा सूखा खाइके, मिला दूध में घी
कब्ज मिटाना होय तो, गरम गरम ही पी
अति की भली है दुश्मनी, अति का भला भी प्यार लेकिन तैसा कजिए, जैसी चले बयार
काल खाए सो आज खा आज खाय सो अब्ब
गेहूँ मँहगे है रहे, फेरि खायगो कब्ब
गहराई से सोचकर दीजे इस पर ध्यान
जैसा जो इंसान हो, वैसा दिखे जहान
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप अति की बुरी कुरूपता, अति का भला न रूप
भोजन आधा पेट कर दुगुना पानी पीउ
तिगुना श्रम चौगुन हँसी वर्ष सवा सौ जीउ
गंजा है तो क्या हुआ कंघा चाँद फिराय
बाल न हों तो क्या हुआ, खुजली ही मिट जाए
चार पहर गपशप लड़ा तीन पहर तू सोय
एक पहर में लंच कर जब ऑफीसर होय
जब मैं था तब हरि नहीं दिखे हजारों कोस
जब हरि आए मैं नहीं रहा यही अफसोस
जीव कर्म बंधन बंधा भोग भाग्य के साथ
हानि-लाभ जीवन-मरण यश-अपयश विधि हाथ
जीवन में और मृत्यु में पल-भर का है फर्क
ज्ञानी ध्यानी थक गए करके तर्क-वितर्क
ज्ञान ध्यान भगवान से पूँजीवाद महान
कर का मनका छोड़ कर धन का कर गुणगान
डाक्टर वैद्य बता रहे कुदरत का कानून
जितना हँसता आदमी उतना बढ़ता खून
ढाई आखर प्रेम का ढूँढ रहे थे अर्थ
ज्ञानी ध्यानी थक गए गया परिश्रम व्यर्थ
धरती पर सोए पिता फटा चादरा तान
तेरहवीं पर कर रहे बेटा शय्या दान
फाइल तू बड़भागिनी कौन तपस्या कीन?
नेता अफसर क्लर्क सब हैं तेरे आधीन
अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम
काका मेरे कह गए कर बेटा आराम
एक भरोसो एक बल एक आत्म्विश्वास
नकल करो है जाउगे फर्स्ट डिवीजन पास
गलती कर मानहुँ नहीं, समझो ख़ुद को ठीक
मोटे-मोटे झूठ को पीस देउ बारीक
अपनी ही कहते रहो, सुनो न दूजी बात
हार जाएं सब सिर धुनें, जीत मनाओ आप
ईश्वर को इस वास्ते याद करें हम आप
बाँट लेय भगवान् भी, फिफ्टी-फिफ्टी पाप
ऊपर-ऊपर अश्रु हैं भीतर मन मुस्कान
असली नकली की बहुत मुश्किल है पहचान
काका निज इनकम कबहु, काहू को न बताए
ना जाने किस भेष में आई.टी.ओ. मिल जाय
काका दाढ़ी राखिए, बिनु दाढ़ी मुख सून
जैसे टाई के बिना व्यर्थ कोट पतलून
काका निर्णय दे रहे मान चाहे मत मान
पागलपन है इश्क में, पैसे में अभिमान
काका अच्छे बुरे की, मुश्किल है पहचान
भीतर से हैवान है, ऊपर से इंसान
काका इस संसार में, मत बैठो चुपचाप
हाथ-पाँव नहिं साथ दें, जीभ चलाओ आप
काका की कविता पढ़ो, करो काव्य से नेह
हास्य-व्यंग के रंग से, स्वस्थ-मस्त हो देह
काका के मस्तिष्क में भरा हास-परिहास
मनहूसी से दूर हैं, कारण है ये खास
काका जग में दो बड़े दामोदर अरु दाम
दामोदर बैठे रहें, दाम करें सब काम
काका या संसार में व्यर्थ राम का नाम
नोट जेब में होंय तो, बन जावें सब काम
कापी-जाँचक से कहें, पापाजी निश्शंक
बेटी है ये आपकी बढ़ा देउ कुछ अंक
कोई पैमाना नहीं, नाप-तौल बेकार
दिल की आँखें खोलकर देख प्रेम आकार
क्या बतलाएँ रंग हम, क्या बतलाएँ जात
हास्य-व्यंग के रंग में रँगे रहें दिन-रात
खुल जाती है हास्य से, दिल-दिमाग की नस्स
रस का राजा हास्य रस, और सभी नीरस्स
खोटा आता वक्त जब सीख न कोई भाय
तुम पूरब को कहोगे, वो पछ्छिम को जाय
खोटे हों नक्षत्र जब, खोटा आता वक्त
ठोकर मारे हास्य में, रुला देय कमबख्त
गुरु ईश्वर या देवता, व्यर्थ हो गए आज
कलयुग में सबसे बड़े कम्प्युटर महाराज
गीता में स्पष्ट है, मानव का क्या धर्म
फल की आशा छोड़ कर करते रहिए कर्म
घबराओ मत मित्रवर, थामे रहो लगाम
दीवाने ही कर सकें साहस के कुछ काम
चाहे जितनी आय हो, मिटे न मन की हाय
'दौलत' में 'लत' घुस रही, छूटे नहीं छुटाय