नव किरण का रथ सजा है
कलि कुसुम से पथ सजा है
बादलों से अनुचरों ने, स्वर्ण की पोशाक धारी
आ रही रवि की सवारी
बादलों से अनुचरों ने, स्वर्ण की पोशाक धारी
आ रही रवि की सवारी
विहग, बंदी और चारण
गा रहे हैं कीर्ती गायन
छोड़ कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी
आ रही रवि की सवारी
चाहता उछ्लूं विजय कह
पर ठिठकता देख कर यह
रात का राजा खड़ा है, राह पर बनकर भिखारी
आ रही रवि की सवारी
- बच्चन
One of my favorites of bachchan ji!
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