सोमवार, जुलाई 16, 2007

मँहगाई

जन - गण - मन के देवता , अब तो आँखें खोल

महँगाई से हो गया , जीवन डाँवाडोल

जीवन डाँवाडोल , ख़बर लो शीघ्र कृपालू

कलाकंद के भाव बिक रहे बैंगन - आलू

कहँ ‘ काका ' कवि , दूध - दही को तरसे बच्चे

आठ रुपये के किलो टमाटर , वह भी कच्चे



राशन की दुकान पर , देख भयंकर भीर

‘ क्यू ’ में धक्का मारकर , पहुँच गये बलवीर

पहुँच गये बलवीर , ले लिया नंबर पहिला

खड़े रह गये निर्बल , बू ढ़े , बच्चे , महिला

कहँ ‘ काका ' कवि , करके बंद धरम का काँटा

लाला बोले - भागो , खत्म हो गया आटा

- काका हाथरसी

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