मंगलवार, अगस्त 28, 2007

राधा सौन्दर्य

करि की चुराई चाल
सिंह को चुरायो लंक
ससि को चुरायो मुख
नासा चोरी कीर की

पिक को चुरायो बैन
मृग को चुरायो नैन
दतन अनार
हँसी बिजुरी गंभीर की

कहे कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराय लीनी
रति रति सोभा सब रती के सरीर की
अब तो कन्हैया जी को
चित ही चुराय लीन्हो
चोरटी है गोरठी यह छोरटी अहीर की.

- कवि बेनी

गुरुवार, अगस्त 02, 2007

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

- दुष्यन्त कुमार

परिचय की गांठ

यूं ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गांठ लगा दी!

था पथ पर मैं भूला भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन लहर ती उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।

कभी कभी यूं हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूंज किसी उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।

जड़ता है जीवन की पीड़ा
निस्-तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने अन्जाने वह पीड़ा
छवि के क्षर से दूर भगा दी।

-त्रिलोचन