मंगलवार, जनवरी 30, 2007

जो तुम आ जाते एक बार

जो तुम आ जाते एक बार

कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार

हंस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार

-महादेवी वर्मा

1 टिप्पणी:

  1. another one by the same poetess..... and one that touches me deeply

    वे मुस्काते फूल नहीं
    जिनको आता है मुर्झाना,
    वे तारों के दीप नहीं
    जिनको भाता है बुझ जाना

    वे सूने से नयन,नहीं
    जिनमें बनते आंसू मोती,
    वह प्राणों की सेज,नही
    जिसमें बेसुध पीड़ा, सोती

    वे नीलम के मेघ नहीं
    जिनको है घुल जाने की चाह
    वह अनन्त रितुराज,नहीं
    जिसने देखी जाने की राह

    ऎसा तेरा लोक, वेदना
    नहीं,नहीं जिसमें अवसाद,
    जलना जाना नहीं नहीं
    जिसने जाना मिटने का स्वाद

    क्या अमरों का लोक मिलेगा
    तेरी करुणा का उपहार
    रहने दो हे देव अरे
    यह मेरे मिटने क अधिकार

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