रविवार, जनवरी 28, 2007

गरीबदास का शून्य

अच्छा सामने देख
आसमान दिखता है?
दिखता है।
धरती दिखती है?
दिखती है।
ये दोनों जहां मिलते हैं
वो लाइन दिखती है?
दिखती है साब।
इसे तो बहुत बार देखा है।
बस गरीबदास
यही गरीबी की रेखा है।
सात जनम बीत जाएंगे
तू दौड़ता जाएगा, दौड़ता जाएगा,
लेकिन वहां तक
कभी नहीं पहुंच पाएगा।
और जब, पहुंच ही नहीं पाएगा
तो उठ कैसे पाएगा?
जहां हैं, वहीं का वहीं रह जाएगा।

गरीबदास!
क्षितिज का ये नज़ारा
हट सकता है
पर क्षितिज की रेखा
नहीं हट सकती,
हमारे देश में
रेखा की गरीबी तो मिट सकती है,
पर गरीबी की रेखा
नहीं मिट सकती।

- अशोक चक्रधर

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