अब मै आपको कोई कविता नहीं सुनाता
एक तमाशा दिखाता हूं
और आपके सामने एक मजमा लगाता हूँ।
ये तमाश कविता से बहूत दूर है,
दिखाऊं साब, मंजूर है ?
कविता सुनने वालों
ये मत कहना कि कवि होकर
मजमा लगा रखा है
और किवता सुनाने के बजाय
यों ही बहला रहा है।
दरअसल, एक तो पापी पेट का सवाल है
और दूसरे, देश का दोस्तो ये हाल है
कि कवि अब फिर से एक बार
मजमा लगाने को मजबूर है,
तो दिखाऊं साब, मंजूर है?
तमाशा देखना मंजूर
थैक्यू, धन्यवाद, शुक्रिया,
आपने 'हां' कही बहुत अच्छा किया।
आप अच्छे लोग हैं, बहुत अच्छे श्रोता हैं
और बाइ द वे तमाशबीन भी खूब हैं,
देखिए मेरे हाथ में ये तीन टैस्ट टयूब हैं।
कहां हैं?
गौर से देखिए,ध्यान से देखिए
मन की आंखों से, कल्पना की पांखों से देखिए।
देखिए यहां हैं।
क्या कहा, उंगलियां हैं?
नही - नहीं टैस्ट टयूब हैं
इन्हें उंगलियां मत कहिए,
तमाशा देखते वक्त दिरयादिल रिहए।
आप मेरे श्रोता हैं, रहनुमा हैं, सुहाग हैं
मेरे महबूब हैं,
अब बताइए ये क्या हैं
तीन...टैस्ट टयूब हैं।
वैरी गुड, थैंक्यू, धन्यवाद, शुक्रिया,
आपने उंगलियों को टैस्ट टयूब बताया
बहुत अच्छा किया
अब बताइए इनमें क्या है?
बताइए - बताइए इनमें क्या है?
अरे, आपको क्या हो गया
टैस्ट टयूब दिखती है
अंदर का माल नहीं दिखता है,
आपके भोलेपन में भी अधिकता है।
खैर छोडि़ए
ए भाईसाहब!
अपना ध्यान इधर मोडि़ए।
चलिए, मुद्दे पर आता हूं,
मैं ही बताता हूं
हां भाईसाहब, हां बिरादर,
हां माई बाप हां गाड फादर! इनमें खून हैं।
पहले में हिंदू का
दूसरे में मुसलमान का
तीसरे में सिख का खून है,
हिन्दू मुसलमान में तो आजकल
बड़ा ही जुनून हैं।
आप में से जो भी इनका फ़र्क बताएगा
मेरा आज का पारिश्रमिक ले जाएगा।
हर किसी को बोलने की आज़ादी है,
खरा खेल, फ़र्क बताएगा
न जालसाज़ी है न धोखा है,
ले जाइए पूरा पैसा ले जाइए जनाब, मौका है।
फ़र्क बताइए,
तीनों में अंतर क्या है अपना तर्क् बताइए
और एक किव का पारिश्रमिक ले जाइए।
आप बताइए नीली कमीज़ वाले साब,
सफेद कुर्ते वाले जनाब।
आप बताइए? जिनकी इतनी लंब दाढी है
संचालक जी आप बताइए
आपके भरोसे हमारी गाडी है
इनके मुँह पर नहीं, पेट में दाढी है
ओ श्रीमानजी,आपका ध्यान किधर है,
इधर देखिए तमाशे वाला तो इधर है।
हाँ, तो दोस्तो!
फ़र्क् है, जरूर इनमें फकर् है,
तभी तो समाज का बेङागर्क है।
रगों में शांत नहीं रहता है,
उबलता है, धधकता है, फूट पड़ता है
सड़कों पर बहता है।
फ़र्क नहीं होता तो दंगे-फसाद नहीं होते,
फकर् नहीं होता तो खून-खराबों के बाद
लोग नहीं रोते।
अंतर नहीं होता तो गर्म हवाएं नहीं होतीं,
अंतर नहीं होता तो अचानक विधवाएं नहीं होतीं।
देश में चारों तरफ
हत्याओं का मानसून है,
ओलों की जगह हिड्डयां हैं
पानी की जगह खून है।
फसाद करने वाले ही बताएं
अगर उनमें थोड़ सी हया है,
क्या उन्हें सांप सूंघ गया है?
और ये तो मैने आपको
पहले ही बता दिया
कि पहली में हिंदू का,
दूसरी में मुसलमान का
और तीसरी में सिख का खून है
अगर उलटा बता देता
तो कैसे पता लगाते
कौन-सा किसका है, कैसे बताते?
और दोस्तों, डर मत जाना
अगर डरा दूँ, मान लो मैं इन्हें
किसी मंदिर, मस्जिद
या गुरूद्वारे के सामने गिरा दं;,
तो है कोई माई का लाल
जो फर्क बता दे,
है कोई पंडित, है कोई मुल्ला, है कोई ग्रंथी
जो ग्रंथियां सुलझा दे?
फर्श पर बिख्रा पङा है, पहचान बताइए,
कौन माखनलाल, कौन सिंह, कौन खान बताइए।
अभी फोरेन्सिक विभाग वाले आएंगे,
जमे हुए खून को नाखून से हटाएंगे।
नमूने ले जाएंगे
इसका ग्रूप 'ओ', इसका 'बी'
और उसक 'बी प्लस' बताएंगे
लेकिन ये बताना क्या उन्के बस मे है
कि कौन-सा खून किसका है?
कौम की पहचान बताने वाला
कोई मैक्रोस्कोप है? वे नहीं बना सकते
लेकिन मुझे तो आपसे होप है
बताइए, बताइए, और एक कवि का
पारिश्रमिक ले जाइए।
अब मैं इन परखनलियों को
स्टोव पर रखता हूँ, उबाल आएगा,
खून खौलेगा, बबाल आएगा।
हां, भाईजान
नीचे से गमीर् दो न तो खून खौलता है
किसी का खून सूखता है, किसीका जलता है
किसी का खून थम जाता है,
किसी का खून जम जाता है।
अगर ये टेस्ट-टयूब फ्रिज में रख दूँ
तो खून जम जाएगा,
सींक डालकर निकालूं तो आइस्क्रीम का मजा आएगा
आप खाएंगे ये आइस्क्रीम
आप खाएंगे,
आप खाएंगी बहन जी
भाईसाहब आप खाएंगे?
मुझे मालूम है कि आप नहीं खा सकते
क्योंकि इंसान हैं,
लेकिन हमारे मुल्क में कुछ हैवान हैं।
कुछ दिरंदे हैं,
जिनके बस खून के ही धंधे हैं।
मजहब के नाम पे, धर्म के नाम पे
वो खाते हैं ये आइस्क्रीम,
भाईसाहब बड़े मज़े से खाते हैँ
और अपनी हवस के लिए
आदमी-से-आदमी को लड़ाते हैं।
इन्हें मासूम बच्चों पर तरस नहीं आता हैं,
इन्हें मीठी लोरियों का सुर नहीं भाता है।
मांग के सिन्दूर से इन्हें कोई मतलब नहीं
कलाई की चूडि़यों से इनका नहीं नाता है।
इन्हें मासूम बच्चों पर तरस नहीं आता हैं।
अरे गुरू सबका, गॉड सबका, खुदा सबका
और सबका विधाता है,
लेकिन इन्हें तो अलगाव ही सुहाता है,
इन्हें मासूम बच्चों पर
तरस नहीं आता है।
मस्जिद के आगे टूटी हुई चप्पलें
मन्दिर के आगे बच्चों के बस्ते
गली गली में बम और गोले
कोई इन्हें क्या बोले,
इनके सामने शासन भी सिर झुकाता है,
इन्हें मासूम बच्चों पर तरस नहीं आता है।
हां तो भाईसाहब!
कोई धोती पहनता है, कोई पायजामा
किसी के पास पतलून है,
लेकिन हर किसी के अंदर वही खून है।
साड़ी में मां जी, सलवार में बहन जी
बुर्खे में खातून हैं,
सबके अन्दर वही खून है,
तो क्यों अलग विधेयक हैं?
क्यों अलग कानून हैं?
खैर छोङिए, आप तो खून का फर्क बताइए
अंतर क्या है अपना तर्क् बताइए।
क्या पहला पीला, दूसरा हरा, तीसरा नीला है?
जिससे पूछो यही कहता है
कि सबके अंदर वही लाल रंग बहता है
और यही इस तमाशे की टेक है,
कि रगों में बहता हो, या सङकों पर बहता हो
लहू का रंग एक है।
फर्क सिर्फ इतना है
कि अलग-अलग टैस्ट-टयूब में हैं;,
अंतर खून में नहीं है, मज़हबी मंसूबों में हैं।
मजहब जात, बिरादरी
और खानदान भूल जाएं
खूनदान पहचानें कि किस खूनदान के हैं,
इंसान के हैं कि हैवान के हैं?
और इस तमाशे वाले की
अंतिम इच्छा यही है कि
खून सङकों पर न बहे,
वह तो धमनियों में दौड़े
और रगों में रहे।
खून सड़कों पर न बहे
खून सड़कों पर न बहे
खून सड़कों पर न बहे।
- अशोक चक्रधर
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