गुरुवार, अगस्त 02, 2007

परिचय की गांठ

यूं ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गांठ लगा दी!

था पथ पर मैं भूला भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन लहर ती उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।

कभी कभी यूं हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूंज किसी उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।

जड़ता है जीवन की पीड़ा
निस्-तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने अन्जाने वह पीड़ा
छवि के क्षर से दूर भगा दी।

-त्रिलोचन

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