यूं ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गांठ लगा दी!
था पथ पर मैं भूला भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन लहर ती उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।
कभी कभी यूं हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूंज किसी उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।
जड़ता है जीवन की पीड़ा
निस्-तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने अन्जाने वह पीड़ा
छवि के क्षर से दूर भगा दी।
-त्रिलोचन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें