एक दिन विष्णुजी के पास गए नारद जी,
पूछा, "मृत्युलोक में कौन है पुण्यश्यलोक
भक्त तुम्हारा प्रधान?"
विष्णु जी ने कहा, "एक सज्जन किसान है
प्राणों से भी प्रियतम।"
"उसकी परीक्षा लूँगा", हँसे विष्णु सुनकर यह,
कहा कि, "ले सकते हो।"
नारद जी चल दिए
पहुँचे भक्त के यहॉं
देखा, हल जोतकर आया वह दोपहर को,
दरवाज़े पहुँचकर रामजी का नाम लिया,
स्नान-भोजन करके
फिर चला गया काम पर।
शाम को आया दरवाज़े फिर नाम लिया,
प्रात: काल चलते समय
एक बार फिर उसने
मधुर नाम स्मरण किया।
"बस केवल तीन बार?"
नारद चकरा गए-
किन्तु भगवान को किसान ही यह याद आया?
गए विष्णुलोक
बोले भगवान से
"देखा किसान को
दिन भर में तीन बार
नाम उसने लिया है।"
बोले विष्णु, "नारद जी,
आवश्यक दूसरा
एक काम आया है
तुम्हें छोड़कर काई
और नहीं कर सकता।
साधारण विषय यह।
बाद को विवाद होगा,
तब तक यह आवश्यक कार्य पूरा कीजिए
तैल-पूर्ण पात्र यह
लेकर प्रदक्षिणा कर आइए भूमंडल की
ध्यान रहे सविशेष
एक बूँद भी इससे
तेल न गिरने पाए।"
लेकर चले नारद जी
आज्ञा पर धृत-लक्ष्य
एक बूँद तेल उस पात्र से गिरे नहीं।
योगीराज जल्द ही
विश्व-पर्यटन करके
लौटे बैकुंठ को
तेल एक बूँद भी उस पात्र से गिरा नहीं
उल्लास मन में भरा था
यह सोचकर तेल का रहस्य एक
अवगत होगा नया।
नारद को देखकर विष्णु भगवान ने
बैठाया स्नेह से
कहा, "यह उत्तर तुम्हारा यही आ गया
बतलाओ, पात्र लेकर जाते समय कितनी बार
नाम इष्ट का लिया?"
"एक बार भी नहीं।"
शंकित हृदय से कहा नारद ने विष्णु से
"काम तुम्हारा ही था
ध्यान उसी से लगा रहा
नाम फिर क्या लेता और?"
विष्णु ने कहा, "नारद
उस किसान का भी काम
मेरा दिया हुया है।
उत्तरदायित्व कई लादे हैं एक साथ
सबको निभाता और
काम करता हुआ
नाम भी वह लेता है
इसी से है प्रियतम।"
नारद लज्जित हुए
कहा, "यह सत्य है।"
-सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
pease iski discription bheje...then the poem is full completed especially for student side.....
जवाब देंहटाएंnikhatkhan